ओ दुख के बंदी!
जंग तेरी ख़ुद से है
ग़ैरों पे मंजर क्यूँ लाता हैं?
दर्द तेरे सीने में है
फिर ज़िक्र ज़ुबान पे क्यूँ आता है?
है गहरा अंधेरा छाया जो
है संसार अभी भी वहीं का वहीं
ये तो समय का दर्पण है , ये तेरा वजूद नही
तूने सोचा होगा वोही जो हमेशा होता आया
सोच नश्वर इंसान ज़रा
बेगाना वरदान एक अभिशाप नही ?
कल कल हर पल बहता है
तू सहम कर सहज उसे जाने देता है
बुरा वक़्त तो क्या हुआ
तू कल पर बाधा आने ना दे
मैला मन को घिस दे आज , सोच मत पहले के पाप
उजलय सवेरा को ख़ुद के कन्धो पे डाल
धीमे चल अपनी हर चाल
और तब तक कर प्रयत्न
जब तक हर चुभती बात एक सुनहरी याद बन जाए
मत सोच बुरा उन लोगों का
जो अपने थे पर ग़ैर हुए
वो भी सोचेंगे एक दिन
क्या खूब थे वो दिन जब वो अपने थे
इसे याद रख पर दोहरा मत
उन्हें याद बना, रख मलाल मत
सर झुका पर आँख भी मिला
कर कोशिश तो दे उसका सिला
ख़ुद पे भी विश्वास कर
मेहनत के रंग का एहसास कर
छूटे नो कोई भी कोना
भूल जा अब ये पल पल का रोना
अपनी ज़रूरतों पे भी वक़्त खर्च कर
हँस थोड़ा , दिल का मर्ज़ कर
और मर्ज़ कर उन दिलों को
सौ सालों से तड़पे है
प्यार के भूखे सब है
पर नसीब में नही ये सबके है
तू बाटेगा और पाएगा
जो बोएगा सो काटेगा
तेरी छवि भी सुधरेगी
तुझे भी दुनिया पूछेगी
पर पूछेगा तू जब जब ये सवाल ख़ुद को
“क़ि क्या इसे हाई जीना कहते है”
तेरी हर एक रूह ख़ुशी से महकेगी
तू भी ख़ुद को पहचानेगा
ख़ुद के गुणो जानेगा
बनेगा तू एक इंसान नया
लेगी फिर उड़ान तेरी कल्पना
Very relatable ,Just brilliant 👌
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Thanks Pranav! Glad you liked it!
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